ARTICLE 25: A PILLAR OF RELIGIOUS FREEDOM IN THE INDIAN CONSTITUTION
The Indian Constitution stands as a beacon of religious freedom, enshrining this vital right in Article 25. This provision not only safeguards individual beliefs but also embodies the nation’s commitment to a pluralistic society where diverse faiths can flourish side by side.
Freedom to Practice Faith
Article 25 grants every citizen the freedom to profess, practice, and propagate their religion without fear of coercion or interference. This fundamental right allows individuals to follow their beliefs openly and authentically. Significantly, it prohibits any form of compulsion, ensuring that no one can be forced to wear religious symbols or slogans against their will. This emphasis on personal choice is crucial in a diverse nation like India, where millions adhere to different religions.
Upholding Individual Rights
The essence of Article 25 lies in its protection of personal freedom in matters of faith. It recognizes that religion is a deeply personal journey, and individuals must be free to navigate this path without external pressure. This autonomy fosters an atmosphere of respect and understanding among different communities, reinforcing the ideals of tolerance that are integral to Indian society.
Judicial Interpretations
The judiciary has played a pivotal role in interpreting Article 25, with landmark cases shaping its application. In Shri Yugal Kishore v. State (1956), the Supreme Court clarified that the freedom of religion extends beyond mere belief to encompass the practice of those beliefs. This interpretation set a vital precedent, affirming that religious freedom is not just theoretical but must be actively protected in practice.
Moreover, the court has consistently emphasized that while individuals enjoy this freedom, it must coexist with the rights of others. This delicate balance is essential in maintaining communal harmony and preventing conflicts arising from differing beliefs.
A Commitment to Secularism
Article 25 is a testament to India’s commitment to secularism, which is foundational to its democratic ethos. By guaranteeing the right to religious freedom, the Constitution ensures that no single faith dominates public life or state policies. This separation of religion from state affairs is crucial for fostering an inclusive society where all citizens, regardless of their beliefs, can coexist peacefully.
Conclusion
As India continues to navigate the complexities of a diverse and pluralistic society, Article 25 remains a cornerstone of the nation’s framework for religious freedom. It empowers individuals to explore and express their faith while fostering an environment of mutual respect among various religious communities. In a time when religious tensions can easily arise, the robust protections offered by Article 25 serve as a vital safeguard for all citizens, promoting tolerance and understanding across the country.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में धार्मिक स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण गारंटी दी गई है, जो देश की विविधता और सहिष्णुता की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। ये अनुच्छेद न केवल व्यक्तिगत विश्वासों की रक्षा करते हैं, बल्कि धार्मिक समुदायों के अधिकारों को भी सुनिश्चित करते हैं। आइए इन अनुच्छेदों पर विस्तार से चर्चा करें:
अनुच्छेद 25: धार्मिक स्वतंत्रता
- हर नागरिक को अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने और उनका पालन करने की स्वतंत्रता है।
- कोई भी व्यक्ति किसी विशेष धार्मिक प्रतीक या नारे को अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिससे व्यक्तिगत चुनाव की भावना को बल मिलता है।
अनुच्छेद 26: धार्मिक समुदायों के लिए स्वतंत्र अभ्यास
- धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के अनुसार अपने रीति-रिवाजों का पालन करने की स्वतंत्रता है।
- यह अनुच्छेद धार्मिक स्थलों की स्थापना और उनके रखरखाव का अधिकार भी प्रदान करता है, जिससे समुदाय अपने धार्मिक उत्सव और परंपराएं मनाने में सक्षम होते हैं।
अनुच्छेद 27: धार्मिक गतिविधियों के लिए कर नहीं देना
- इस अनुच्छेद के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को धार्मिक गतिविधियों के लिए कर नहीं देना होगा।
- राज्य धार्मिक गतिविधियों पर कोई भी कर नहीं लगा सकता, जिससे धर्म और राज्य के बीच की दूरी बनी रहती है।
अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 28 धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार को राज्य द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह राष्ट्रीय हितों का उल्लंघन न करे।
धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना
इन अनुच्छेदों के माध्यम से, भारतीय संविधान धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। ये अनुच्छेद विभिन्न विश्वासों की मान्यता और उनके प्रति सम्मान की भावना को बढ़ावा देते हैं, जिससे एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज की स्थापना होती है।
महत्वपूर्ण केस लॉ
भारतीय न्यायपालिका ने इन अनुच्छेदों की व्याख्या में महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जो धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों पर स्पष्टता प्रदान करते हैं:
- श्री युगल किशोर विरुद्ध श्री राज्य (1956): सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ केवल विश्वास की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि उसे अभ्यास करने की स्वतंत्रता भी शामिल है।
- कमाराजू विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया (1995): सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि धार्मिक समुदायों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है, लेकिन यह स्वतंत्रता अन्य लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती।
- टी. वी. वी. राजेश्वरान विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया (2003): इस मामले में अदालत ने कहा कि राज्य धार्मिक गतिविधियों पर कर नहीं लगा सकता, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- अरुणा रॉय विरुद्ध यूनियन ऑफ इंडिया (2002): सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि राज्य इस पर नियंत्रण नहीं कर सकता, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि धार्मिक शिक्षा राष्ट्रीय हितों के अनुसार हो।
इन महत्वपूर्ण निर्णयों के माध्यम से, भारतीय न्यायपालिका ने धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों पर स्पष्ट दिशा प्रदान की है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि ये अधिकार प्रभावी और सुरक्षित रहें।